आखिरी उम्मीद लिए लाशों के बीच अपनों को ढूंढ रहे लोग, कोई राख तो कोई कपड़ों से कर रहा पहचान - DIGITAL MIRROR

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आखिरी उम्मीद लिए लाशों के बीच अपनों को ढूंढ रहे लोग, कोई राख तो कोई कपड़ों से कर रहा पहचान

'आइए अंदर रखे शवों में से अपनों को पहचान लीजिए', यह सुनते ही बुजुर्ग महिला के चेहरे पर अनजाना सा डर पसर गया। शव गृह की दूरी बमुश्किल दस कदम ही थी, लेकिन ये दूरी भी मीलों लंबी लगी और हिम्मत ने दरवाजे पर आकर दम तोड़ दिया। 
 

दूसरों ने आकर खबर दी, इन लाशों में आपके अपने नहीं हैं। यह सुन चेहरे पर थोड़ा सुकून तो आया, लेकिन सवाल अभी भी खड़ा था कि आखिर मेरा बेटा कहां है? जिंदा भी है या ...

यह नजारा दिल्ली के जीटीबी अस्पताल के शव गृह का है, जहां अपनों की तलाश में बहुत सी आंखें बाट जोह रही हैं। हर किसी का दिल दुआ कर रहा है कि उसकी तलाश बस यहां शव गृह पर आकर खत्म न हो। जब भी अंदर से शिनाख्त के लिए आवाज लगाई जाती, तो दिल जोर से धड़कने लगता। ऐसे ही टूटती और बंधती उम्मीदों के बीच लोग अस्पताल में अपनों को तलाश रहे हैं। कोई सुबह से शाम तक यहां बैठा है, तो कोई दो वक्त की रोटी कमाने से पहले और बाद में यहां आकर 'हाजिरी' लगा रहा है। 


मुठ्ठी भर राख में भाई को पहचानने की कोशिश 



मोहम्मद शाहबाज - 




22 साल का मोहम्मद शाहबाज करावल नगर के पास एक कच्ची कॉलोनी का रहने वाला था। 24 फरवरी से लापता है। छोटा भाई मकबूल आलम अपने दोस्त के साथ पिछले कई दिनों से अस्पतालों के चक्कर काट रहा है। 

शिनाख्त के लिए उसे एक जला हुआ शव दिखाया गया। मकबूल के मुताबिक वो शव नहीं महज मुठ्ठीभर राख थी। यह भी पता नहीं कि यह महिला थी या पुरुष। अब ऐसे में कैसे पहचान करें। छोटे भाई ने बताया कि शाहबाज वेल्डिंग का काम करता था, इसलिए आंख में कुछ समस्या आ गई थी। जब दर्द नहीं सहा गया, तो घरवालों के मना करने के बावजूद 24 फरवरी को गुरु नानक अस्पताल के लिए निकल गया। 

वापस लौटा तो करावल नगर में हिंसा भड़क चुकी थी। छोटे भाई ने समझाया कि इस तरफ मत आओ। लेकिन जवाब आया कि वो गाड़ियों में से लोगों को उतार रहे हैं, मैं पैदल आ रहा हूं। मगर कुछ देर बाद न फोन मिला और न ही शाहबाज। 




कपड़ों से 'पहचाना' गया फिरोज 




चांदनी चौक में काम करता था फिरोज - फोटो : Amit Kumar


फिरोज (35) चांदनी चौक में काम किया करता था। 24 फरवरी को काम से वापस लौट रहा था। उसके साले ने बताया कि किसी ने उसे बाइक पर लिफ्ट भी दी, लेकिन दंगाइयों ने उसे उसके कपड़ों से पहचान लिया। 

करावल नगर में उसे घेरकर बुरी तरह से पीटा गया। इसी बीच कुछ लोगों ने उसे बचाया और पास में अपने घर ले गए। पैर में काफी चोट आई थी। अगले 24 घंटे तक फिरोज से बात भी होती रही, लेकिन अचानक से मदद देने वालों के फोन भी बंद हो गए। पुलिस की मदद से लोकेशन पर पहुंचे तो देखा कि वहां सब कुछ जलकर खाक हो चुका था। तब से फिरोज को उसके अपनों की आंखें तलाश रहीं हैं। 
 




टैंट की दुकान में काम करता था पंकज 



पंकज की तस्वीर के साथ उसके चाचा - 


दिल्ली के बृजपुरी में रहने वाला 18 साल का पंकज पर छोटी उम्र में ही परिवार के पालन पोषण का बोझ आ गया। 24 फरवरी को घर से काम के लिए निकला था, लेकिन फिर लौटा ही नहीं। 



सुनील को है अपने पिता की तलाश 




सुनील के पिता भी लापता हैं - 


मौजपुर के रहने वाले सुनील ने बताया कि उसके पिता 24 को घर के पास ही घूमने निकले थे, लेकिन अब तक उनका कुछ पता नहीं। उम्मीद थी कि लौट आएंगे, लेकिन समय बीतने के साथ ही डर बढ़ता जा रहा है। 



दिहाड़ी के लिए गया था सलमान, फिर लौटा ही नहीं 




सलमान की तस्वीर के साथ बड़ा भाई -


दिल्ली से सटे एनसीआर की रघुनाथ कॉलोनी में रहने वाला 25 साल का सलमान घर बनाने के काम में दिहाड़ी मजदूरी करता था। 26 फरवरी को वह काम की तलाश में चौक पर गया, वहां से शायद कोई मिस्त्री उसे ले गया। मगर तभी से वह लापता है। 





तलाश है कि खत्म नहीं हो रही -


45 साल का नईमुद्दीन बुक बाइंडिंग का काम करता था। 24 फरवरी की रात को अपने रिश्तेदार के साथ घर के लिए निकला था। लेकिन पांच दिन के बाद भी वह घर नहीं लौट सका।


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