कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार पिछले एक साल से जातिगत जनगणना की वकालत कर रहे हैं। संसद और जनसभाओं में वह लगातार जनगणना कराने का दावा कर रहे हैं, मगर कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार एक दशक पहले हुई जातीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट दबाए बैठी है। राहुल गांधी के निर्देश के बाद भी सिद्धारमैया सरकार इसे सार्वजनिक करने में टालमटोल कर रही है।
बेंगलुरु: कांग्रेस के नेता राहुल गांधी पिछले एक साल से जातीय जनगणना के समर्थन में बयान दे रहे हैं। हाल ही में उन्होंने प्रयागराज के संविधान सम्मान सम्मेलन में कहा कि जातीय जनगणना उनके जीवन का मिशन है और वह इसके लिए राजनीतिक कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं। कांग्रेस के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि जाति वाला दांव से पार्टी एक बार फिर ओबीसी वोटरों का समर्थन हासिल कर लेगी, जिसे वह मंडल आंदोलन के बाद खो चुकी है। कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार के दूसरे कार्यकाल के 15 महीने बीत चुके हैं, मगर 10 साल पहले कराए गए जातीय सर्वे की रिपोर्ट को अभी भी सार्वजनिक नहीं किया है। कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि अगर सरकार कर्नाटक में ओबीसी आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करती है तो राहुल गांधी के अभियान को तगड़ा झटका लग सकता है। यह भी माना जा रहा है कि आरोपों के घिरे सिद्धारमैया इसे सियासी तीर की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं।
10 महीने बीत गए, सिद्धारमैया ने की राहुल के आदेश की अनदेखी
कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार दो मुद्दों पर घिर गई है। पहले तो खुद सिद्धारमैया पत्नी के नाम आवंटित जमीन को लेकर सवालों से घिरे हैं। राज्यपाल ने इस मामले में केस चलाने की मंजूरी दे दी है। दूसरा मोर्चा 2013-14 में कराए गए जातीय जनगणना की रिपोर्ट का है। एक दशक पहले कांग्रेस ने 'सामाजिक एवं आर्थिक' सर्वे के नाम पर कर्नाटक में जाति की गिनती कराई थी। पिछड़ी जाति आयोग ने सर्वे के बाद रिपोर्ट सिद्धारमैया के पहले कार्यकाल में ही सौंप दी, मगर कांग्रेस सरकार ने इसे सार्वजनिक नहीं किया। इसके बाद बीजेपी सरकार ने भी इसमें दिलचस्पी नहीं ली। इस बीच बिहार में भी आर्थिक-सामाजिक सर्वे हुआ, जिससे जुड़ी जानकारी के बाद पता चला कि राज्य में ओबीसी की आबादी 60 फीसदी से अधिक है। इसके बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी जाति के सियासी रथ पर सवार हुए और हर चुनाव में जातीय जनगणना वकालत की। कर्नाटक में दोबारा सरकार बनाने के बाद 9 अक्तूबर को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हुई। इस बैठक में जाति जनगणना के निष्कर्ष जारी करने का फैसला किया गया था। फिलहाल इस मीटिंग के भी 10 महीने बीत चुके हैं, मगर सिद्धारमैया सरकार रिपोर्ट पर कुंडली मारकर बैठी है।
कांग्रेस के लिए बाघ की सवारी हो गई जातिगत जनगणना
कांग्रेस पार्टी के एक नेता ने कहा कि अब कर्नाटक में जातीय जनगणना का मुद्दा पार्टी के लिए बाघ की सवारी जैसा हो गया है। पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट लीक हो चुकी है। राज्य के अधिकतर मंत्रियों को पता है कि सर्वे में कई खामियां थीं। 6 करोड़ की आबादी वाले कर्नाटक के करीब 32 लाख लोगों को सर्वे में शामिल नहीं किया गया। सर्वे से छनकर आई सूचनाओं के आधार पर दावा किया गया कि कर्नाटक में ओबीसी से अधिक दलित आबादी है। दूसरी बड़ी आबादी मुस्लिम समुदाय की है। राजनीति और सामजिक तौर पर ताकतवर माने जाने वाली वोक्कालिगा और लिंगायत की कुल आबादी 1.25 करोड़ है। इसमें लिंगायत की आबादी वोक्कालिगा समुदाय से अधिक बताई गई। इसके अलावा ओबीसी कैटिगरी में कई जातियों को शामिल करने पर भी विवाद हुआ।
आरोपों से घिरे सीएम सिद्धारमैया कर रहे हैं मौके का इंतजार
सूत्रों के अनुसार, ओबीसी आयोग की जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को सरकार जारी करती है तो कर्नाटक में असंतोष भड़क सकता है। खुद कांग्रेस नेता और डिप्टी सीएम डी के शिवकुमार रिपोर्ट के आंकड़े को खारिज कर चुके हैं। कर्नाटक कांग्रेस में भी इसे लेकर आम सहमति नहीं है। मुद्दा गरम हुआ तो सरकार को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। सिद्धारमैया पहले ही जमीन घोटाले के आरोपों से जूझ रहे हैं। डी. के. शिवकुमार लगातार सीएम पद की दावेदारी कर रहे हैं। माना जा रहा है कि सिद्धारमैया जातिगत जनगणना की रिपोर्ट का राजनीतिक इस्तेमाल कर सकते हैं। वह मौके के इंतजार में हैं।